जागरण ब्यूरो, लखनऊ बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की मेरिट को ही चयन का आधार बनाने के मायावती सरकार के फैसले को सपा सरकार ने बदलने का फैसला कर लिया है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की मंशा पर अमल करते हुए शासन ने टीईटी को राज्य में अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा देने की तैयारी कर ली है। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन को निरस्त कर शिक्षकों के चयन की पुरानी व्यवस्था को बहाल किया जाएगा। इस संशोधन पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद पिछले साल 13 नवंबर को आयोजित टीईटी को अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा हासिल हो जाएगा। इस संबंध में मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की तैयारी है। एनसीटीई ने 11 फरवरी 2011 को राज्यों को जारी दिशानिर्देश में टीईटी को अर्हताकारी परीक्षा माना था। एनसीटीई की मंशा के अनुरूप राज्य सरकार ने भी सात सितंबर 2011 को शासनादेश जारी करते हुए टीईटी को अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिया था। परीक्षा से चार दिन पहले नौ नवंबर 2011 को राज्य सरकार ने कैबिनेट की मंजूरी से उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली के नियम-14 में संशोधन कर दिया था। नियमवाली में इस 12वें संशोधन के जरिये टीईटी की मेरिट को ही शिक्षकों के चयन का आधार बना दिया गया। बाद में टीईटी के परीक्षा परिणाम में धांधली उजागर हुई। उधर हाईकोर्ट ने शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। लिहाजा बीते वर्ष आयोजित टीईटी को लेकर अनिश्चितता का माहौल बन गया था।
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