आरपी सिंह
नई दिल्ली। जन लोकपाल विधेयक का प्रारुप बनाने के लिए बनी समिति में जबर्दस्त मतभेद उभर कर सामने आए हैं। सरकार ने समाज के सदस्यों की तरफ से दिए गए लगभग सभी सुझावों को ठुकरा दिया है। समाज के सदस्यों ने चेतावनी भरे लहेजे में कहा कि यदि अगली बैठक में सरकार के रुख में बदलाव नहीं आता तथा सरकार मुख्य मुद्दों पर आम राय नहीं बनाती तो वह इस समिति से हट जाएंगे। एक निजी चैनल से वार्ता के दौरान समिति में समाज के तरफ से शामिल सदस्य अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा कि सरकार का रुख काफी निराशाजनक है। समिति की बैठकों में सरकार की तरफ से कहा जा रहा कि लोकपाल के दायरे में प्रधाननमंत्री, उच्च न्यायपालिका, संसद के अंदर सांसदो आचरण तथा नौकरशाही में भी सचिव स्तर के नीचे के अधिकारियों को नहीं लाया जा सकता। इस संबंध में केजरीवाल का कहना है कि यदि इन सबको लोकपाल के दायरे से बाहर ही रखना है तो फिर लोकपाल बिधेयक का मतलब ही क्या रह जाएगा? समिति के एक अन्य सदस्य व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है कि मंत्रियों ने समिति की बैठक में अभी तक निर्णायक रूप से कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन उनकी राय थी कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना ठीक नहीं होगा। मैं याद दिला दूं कि सरकार द्वारा बनाए गए प्रारुप में भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया है। इसके बाद भी सरकार की तरफ से शामिल सदस्यों का यही कहना है कि इस बारे में उन्हें विचार करना होगा, एक्सपर्ट्स की राय लेनी होगी। इन सब को देखते हुए अगली बैठक अहम होगी। समिति की अगली बैठक 6 जून को होनी तय है। मालूम हो कि लोकपाल विधेयक का प्रारुप तैयार कर रही समिति की सोमवार को हुई बैठक में कुछ भी सार्थक नतीजा सामने नहीं आया। सरकार ने समाज की तरफ से आ रहे उस प्रस्ताव का विरोध किया है, जिसमें लोकपाल के कानूनी दायरे में प्रधानमंत्री को भी लाने की बात कही गई है। ड्राफ्ट समिति के मुताबिक सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि लोकपाल विधेयक का प्रारुप जून तक तैयार नहीं हो पाएगा। यानी 15 अगस्त तक बिल पारित किए जाने की अन्ना हजारे की मांग को भी सरकार ने खारिज कर दी। इस बारे में हजारे पहले ही कह चुके हैं कि यदि 15 अगस्त तक लोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वह फिर आंदोलन करेंगे।
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