केंद्र को यूजीसी पर सुपरवाइजरी शक्ति नहीं
विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि 31 दिसम्बर 2009 से पहले के सभी पीएचडी डिग्रीधारक विश्वविद्यालयों में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति पाने के हकदार नहीं है। केवल वहीं डिग्रीधारक अर्हता रखते हैं जिन्होंने यूजीसी की नेट के लिए निर्धारित 11 शर्तो में से छह शर्ते पूरी करते हों। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन लोगों ने यूजीसी की नेट से छूट के दौरान पीएचडी की है और तदर्थ प्रवक्ता पद पर कार्यरत है, उन्हें नेट टेस्ट में बिना बैठे नियमित नियुक्ति पाने का हक है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि योग्यता अर्हता निर्धारण का अधिकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को है, केंद्र सरकार को इस सम्बन्ध में हस्तक्षेप का अधिकार नही है। रेग्यूलेशन 2009 संशोधन इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित सभी विश्वविद्यालयों पर लागू है। इसी के साथ न्यायालय ने याचियों को विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ता के लिए अर्ह माना है बशर्ते वे यूजीसी की 11 में से 6 शर्ते पूरी करते हों। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की खण्डपीठ ने डा. रमेश कुमार यादव व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचियों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में अतिथि प्रवक्ता पद के लिए आवेदन दिया है जिसमें से एक 2009 व दूसरा 2003 में पीएचडी डिग्री धारक है इस दौरान यूजीसी ने नेट टेस्ट से छूट दी थी। यूजीसी की संस्तुतियों को निरस्त करने का अधिकार केंद्र सरकार को नहीं है इसके लिए केंद्र का पूर्व अनुमोदन जरूरी नहीं है केंद्र को यूजीसी पर सुपरवाइजरी शक्ति प्राप्त नहीं है। न्यायालय के इस आदेश से 2009 से पहले के पीएचडी डिग्री धारकों जो 6 शर्ते पूरी करते हैं प्रवक्ता बनने का रास्ता सुलभ है।
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