संविदा शिक्षकों पर शासन मेहरबान
लखनऊ, 23 अगस्त (जाब्यू) : अशासकीय सहायता प्राप्त कॉलेजों में स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए संविदा पर नियुक्त शिक्षकों पर शासन मेहरबान है। ऐसे शिक्षकों को कॉलेजों के प्रबंधतंत्र द्वारा कम वेतन के भुगतान की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए शासन ने इस समस्या से निपटने के लिए नया आदेश जारी किया है। नए शासनादेश के मुताबिक अशासकीय सहायता प्राप्त कॉलेजों में स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों से शुल्क के रूप में जो आमदनी होती है, उसे एक ही बैंक के एक ही खाते में रखा जाएगा और हर महीने विभिन्न पाठ्यक्रमों की सकल आय की 75 से 80 फीसदी धनराशि शिक्षकों के वेतन पर खर्च की जाएगी। इस व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए खाते का संचालन कॉलेज के प्रबंधक और प्राचार्य के संयुक्त हस्ताक्षर से किया जाएगा। इस खाते का आवश्यक रूप से ऑडिट कराया जाएगा और प्रबंधतंत्र को हर साल 30 जून तक विश्वविद्यालय व शासन को ऑडिट रिपोर्ट उपलब्ध करानी होगी। शासनादेश में यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि संविदा पर नियुक्त शिक्षक का कार्य व आचरण संतोषजनक हो और उसके विरुद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही नहीं चल रही हो तो प्रबंधतंत्र संबंधित विश्वविद्यालय के अनुमोदन से शिक्षकों की संविदा का नवीनीकरण अपने स्तर से करते रहेंगे। शिक्षक के खिलाफ कोई प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न होने पर संबंधित विश्वविद्यालय के कुलपति का निर्णय अंतिम होगा। शिक्षकों की संविदा अवधि बढ़ाने के लिए अब तक जो व्यवस्था प्रचलित थी उसके तहत पांच वर्ष की पहली संविदा समाप्त होने पर प्रबंधतंत्र फिर से चयन की कार्यवाही शुरू करने से पहले साफ सुथरी छवि वाले शिक्षकों के नाम पर निश्चित रूप से विचार करेगा और उनकी संविदा का अगले पांच साल के लिए नवीनीकरण किया जाएगा। अब तक प्रचलित व्यवस्था के तहत संविदा के नवीनीकरण के लिए पूर्व में कार्यरत शिक्षकों को साक्षात्कार में शामिल करने या विश्वविद्यालय से उनके नाम अनुमोदित कराने की जरूरत नहीं थी। शासन ने संविदा शिक्षकों को सभी अनुदानित कॉलेजों की उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है। इन शिक्षकों को रिफ्रेशर/आरियंटेशन कार्यशालाओं में भाग लेने की अनुमति भी प्रदान की गई है। नए शासनादेश में यह भी कहा गया है कि यदि किसी स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम में छात्रों की संख्या शून्य हो जाती है तो कॉलेज अपनी रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत करेगा। शासन के अनुमोदन के बाद विश्वविद्यालय की अनुमति से ही ऐसे पाठ्यक्रम को बंद किया जा सकता है।
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